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    लैंगिक संवेदनशीलता

    केन्द्रीय विद्यालय संगठन में लैंगिक संवेदनशीलता ; समानता तथा समता के क्षितिज की उड़ान।
    देश की सर्वोत्तम संपदा उसका मानव संसाधन होती है। इसी के परिणामस्वरूप कोई भी देश अपने भविष्य को सुरक्षित, समृद्ध, विकसित तथा खुशहाल बनाने के लिए उसकी शिक्षा, मानसिक, शारीरिक तथा भावनात्मक स्वास्थ्य में निवेश करता है। 19 वर्ष की आयु तक बालक तथा बालिका एक संवेदनशील दौर से गुजरते हैं। जहाँ उन्हें आत्म पहचान बनाने की जटिल प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। जाति, धर्म, भाषा, वेशभूषा, शारीरिक स्वायत्तता का अभाव, शिक्षा तक असमान पहुंच, कानूनी सुरक्षा का अभाव, संकीर्ण विचारधारा, ख़राब चिकित्सा देखभाल, राजनीतिक प्रतिनिधित्व का अभाव क्षेत्रीयता तथा आर्थिक स्थिति के आधार पर भेदभाव के अलावा मानकों, धारणाओं और रिवाजों के कारण लैंगिक असमानता का दंश देश की इस पीढ़ी को देखना और यदा कदा झेलना भी पड़ता है। देश के अधिकांश हिस्सों में पितृसत्तात्मक समाज की जड़ें गहरी तथा विकृत रूप लिए हैं जिसके फलस्वरूप देश की आधी जनसंख्या को उसका दंश झेलना पड़ता है जो लैंगिक असमानता को बढ़ावा देती है। स्त्री पुरुष की दासी है, हिंसा, शोषण, उत्पीड़न, उसका पुरुष द्वारा पीटा जाना उसकी किस्मत और सौभाग्य, लड़की पढ़ कर क्या करेगी इत्यादि कुटिल कटाक्ष महिला को दुर्भाग्यवश या बेबसी या तानों से डर या अज्ञानता या आर्थिक असुरक्षा या लोगों की विकृत मानसिकता या स्त्री के कोमल हृदय की वजह से अकसर झेलने पड़ते हैं और उनके अभिकर्तव्य कमजोर करने के कुत्सित प्रयास किए जाते हैं। लैंगिक विभेद के दुष्प्रभाव के रूप में कन्या भ्रूणहत्या, असंतुलित लिंगानुपात, असमानता और असमता, मानसिक कुप्रभाव, असुरक्षात्मक वातावरण सामने आते हैं। सेक्शुअल हैरेसमेंट भी एक प्रकार का लैंगिक भेदभाव है। इस धारणा को बढ़ावा दिया जाता है कि स्त्री में निर्णय लेने की क्षमता नहीं होती। दहेज प्रथा भी लैंगिक असमानता का एक वीभत्स उदाहरण है जो सदियों से किसी न किसी रूप में समाज में विद्यमान है। प्राचीन भारत के प्रारम्भिक साहित्य, पौराणिक कथाओं,महाकाव्यों और लोक कथाओं में तीसरे लिंग के स्वीकार्य ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं, ठीक वैसे जैसे प्रकृति का रूप है। सृष्टि में भगवान शिव का अर्धनारीश्वर रूप, भगवान श्रीराम के लिए वनवास से लौटने का इंतजार करते ‘तीसरे लिंग का समुदाय’, अर्जुन का बृहन्नला रूप, शिखंडी का चरित्र, चित्रांगदा की लिंग परिवर्तन की कहानी इस और स्पष्ट इशारा करते हैं। आज आधुनिक युग में उन्हें वही सम्मान प्रदान करना होगा।

    लैंगिक भेदभाव मजदूरी हो या नौकरी या मनोरंजन का क्षेत्र, जहाँ अभिनेत्रियों को कमतर समझा जाता है तथा उन्हें पारिश्रमिक भी अभिनेताओं की तुलना में कम मिलता है। खेलों की दुनिया का ज्वलंत उदाहरण सबके सामने है जहाँ करोड़ों रुपये पुरुष खिलाड़ियों पर होते हैं लेकिन महिलाओं के खेलों में चुनिंदा प्रायोजक सामने आते हैं।
    ऐसे में विद्यालय में शिक्षण प्राप्त कर रहे विद्यार्थियों के लिए लैंगिक संवेदनशीलता के पाठ पढ़ाया जाना नितांत आवश्यक हो जाता है।
    ऐसे में केन्द्रीय विद्यालय संगठन ने अपनी शिक्षण प्रणाली के माध्यम से इस जटिल अवधारणा का निदान पाने के सफल प्रयोग शुरू किए हैं। शिक्षा के लोकप्रिय सिद्धांत ‘मस्तिष्क, हृदय तथा हस्त कौशल के समन्वयन को दर्शाती केन्द्रीय विद्यालय में प्रयुक्त कार्यप्रणाली अनुभवात्मक, सहभागी, संवादात्मक तथा चिंतनशील है।
    लैंगिक असमानता को नियंत्रित करने के लिए शिक्षा के माध्यम से विद्यार्थियों को लैंगिक संवेदनशीलता के बारे में जागरूक करने के भागीरथी प्रयास किए जा रहे हैं। लैंगिक संवेदनशीलता महिला को पुरुष के विरुद्ध सोच पैदा करने में नहीं, अपितु शिक्षा के माध्यम जागरूकता पैदा कर समता और समरसता विकसित करना है। इसके लिए सबसे पहले विद्यार्थियों को लैंगिक समानता के बारे में स्पष्ट तथा सटीक जानकारी द्वारा जागरूक किया जा रहा है।
    क्या है यह लैंगिक संवेदनशीलता और लैंगिक समानता ?
    सबसे पहले दो शब्दों में भेद जानना जरूरी है- लिंग और सेक्स। जैविक भिन्नता को लोग सामाजिक मतभेद का रूप दे देते हैं। यही दो शब्द आज के विद्यार्थी रूपी अभिमन्यु को अपने चक्रव्यूह में फँसा कर बैठे हैं। इस तिलस्म को तोड़ने के लिए इन दोनों शब्दों का अर्थ जानना आवश्यक है। सेक्स जीव–वैज्ञानिक तौर पर स्त्री तथा पुरुष के बीच का भेद है। जबकि लिंग एक सामाजिक निर्मिति है। लिंग भूमिकाएं और अपेक्षाएं कालांतर में सृजित की जाती हैं तथा परिवर्तनशील हैं।
    सेक्स जैविक रूप से निर्धारित होता है, सार्वभौमिक, अपरिवर्तनीय (विज्ञान में लिंग परिवर्तन के प्रयोग जारी हैं ) तथा जन्मजात होता है। जबकि लिंग समाज द्वारा निर्मित संस्कृति आधारित बहुआयामी, गतिशील, परिवर्तनीय तथा अधिग्रहित होता है। पुरुष और महिला सेक्स आधारित श्रेणी हैं तथा पुल्लिंग और स्त्रीलिंग, लिंग आधारित श्रेणियाँ हैं।
    केन्द्रीय विद्यालय में विद्यार्थियों की सुरक्षा हेतु विद्यालय परिसर में सीसीटीवी लगाए जाते हैं तथा सुरक्षा कर्मी भी तैनात किए जाते हैं। समय समय पर विद्यार्थियों को सेल्फ डिफेन्स कार्यशाला के माध्यम से प्रशिक्षित किया जाता है। गाइडन्स एवम् काऊँस्लिंग सेल, सामाजिक विज्ञान युवा क्लब, साहित्य के माध्यम से जागरूकता के उद्देश्य से लिटरेरी क्लब की स्थापना की गई है। बालिकाओं को निर्बाध रूप से शिक्षा प्रदान करने के लिए सिंगल गर्ल चाइल्ड को दाखिले में प्राथमिकता एवम् आरक्षण की सुविधा उपलब्ध है तथा छात्रा के लिए कक्षा 12 वीं तक ट्यूइशन फीस माफी व्यवस्था भी है। कार्यस्थल पर महिला कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए कानून का प्रावधान है तथा महिलाओं और एन.जी.ओ. की सहायता से कमिटी का गठन भी किया गया है।
    केन्द्रीय विद्यालय संगठन शिक्षक, लड़कों एवं लड़कियों पर समान रूप से ध्यान, सम्मान और समान अवसर तथा लैंगिक भेदभाव के बिना, समान रूप से अपेक्षाएं रखता है।
    लैंगिक पक्षपात रहित किताबों, नाटकों और अन्य गतिविधियों का चयन किया जाता है।
    शिक्षक तटस्थ भाषा का प्रयोग करते हैं।
    समान रूप से पुरूष एवं महिला के तौर पर चित्रित कहानियों, गीतों, गतिविधियों और सहज साधनों का उपयोग किया जाता है जो लड़कियों एवं लड़कों के साथ विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को सभी पेशों में करते हैं। अभिभावक को भी नियमित रूप से घर पर ऐसे अभ्यासों का समर्थन करने के लिए प्रेरित किया जाता है ताकि बच्चों को इसके लिये संवेदनशील बनाया जा सके।
    केन्द्रीय विद्यालय संगठन द्वारा विद्यार्थियों में लैंगिक संवेदनशीलता तथा जागरूकता हेतु शिक्षकों तथा विद्यार्थियों के लिए निम्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं ;
    1. विश्रुति कार्यक्रम: इस कार्यक्रम के माध्यम से लड़कियों में आत्म-जागरूकता , सर्वांगीण विकास, सकारात्मक दृष्टिकोण का निर्माण, आत्मविश्वास पैदा करना, भविष्य के लिए सक्षम बनाना इत्यादि ।
    2. जागरूक नागरिक कार्यक्रम: रामकृष्ण मिशन के तत्वाधान में विद्यार्थियों में समानता तथा संत का भाव जागृत करने के लिए यह कार्यक्रम 3 वर्ष तक चलाया जाता है।
    3. सीबीएसई उड़ान स्कीम: उड़ान एक ऐसा मंच है जो छात्राओं को सशक्त बनाता है, प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थानों में शामिल होने की उनकी आकांक्षा को पूरा करता है और भविष्य में देश के विकास/प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस कार्यक्रम के तहत, छात्रों को देश के विभिन्न प्रमुख इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा में पढ़ाई के दौरान वर्चुअल सप्ताहांत संपर्क कक्षाओं के माध्यम से मुफ्त ऑफ़लाइन/ऑनलाइन संसाधन और प्री-लोडेड टैबलेट पर अध्ययन सामग्री प्रदान की जाती है।
    4. बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम : भारत सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना को केन्द्रीय विद्यालय संगठन में अक्षरशः लागू करते हुए यह सुनिश्चित किया जाता है कि क्षेत्र की बालिकाओं को विद्यालय में सभी प्रकार की सुविधा प्रदान कर उनका सर्वांगीण विकास किया जाए।
    5. भारत स्काउट एवम् गाइडस : इसके माध्यम से विद्यार्थियों में छिपी प्रतिभा को निखार कर उन्हें जिम्मेदार नागरिक बनाया जा सके।
    6. कार्यशाला इन – सर्विस कोर्स , सेमीनार तथा अन्य माध्यम से समय समय पर नियम, कानून तथा सामाजिक विषयों कर प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।
    7. सेक्शुअल हरेसमेंट समिति : विद्यार्थियों को समिति के माध्यम से लिंग तथा सेक्स का भेद बताने के अलावा, अच्छे – बुरे स्पर्श, इशारे और उनकी भलाई संबंधी अन्य मुद्दों के बारे में जागरूक किया जाता है।
    8. विषय विशेषज्ञ आख्यान: समय समय पर विषय विशेषज्ञों को आमंत्रित कर विषय पर विद्यार्थियों को प्रेरणा प्रदान करने के लिए आमंत्रित किया जाता है।
    केन्द्रीय विद्यालय में जिला पानीपत के जिला शिक्षा अधिकारी श्री कुलदीप दहिया, राज्य के अग्रणी एन.जी.ओ. ‘ब्रेकथ्रू’ की तारों की टोली के माध्यम से लैंगिक संवेदनशीलता की अलख जगाते स्टेट डायरेक्टर मुकेश दिगानी तथा लोकमार्ग फाउंडेशन और अन्य गैर सरकारी संस्थाओं के सानिध्य में, विद्यालय में विद्यार्थियों के लिए कार्यशालाओं का आयोजन किया जाता है। सीबीएसई तथा एनसीईआरटी के पीएमई विद्या चैनल, सहयोग और मनोदर्पण से जुड़े प्रशिक्षित परामर्शदाता राजेश वशिष्ठ तथा सीबीएसई से जुड़ी परामर्शदाता प्राचार्या प्रेमलता समनोल द्वारा विद्यालय, सम्भागीय तथा राष्ट्रीय स्तर पर समय समय पर लैंगिक संवेदनशीलता से जुड़े कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
    केन्द्रीय विद्यालय प्रयासरत है कि कोई बालिका, छात्रा अथवा स्त्री कहेगी कि “मैं कर सकती हूँ क्योंकि मैं स्त्री हूँ ।”

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